शनिवार, 28 जून 2008

बताता है कोई !

अचानक रात को चलता हुआ आता है कोई,
मेरे बालो को बड़ी खामोशी से सहलाता है कोई।
अंधेरे मे कोशिश करता हु उसे पहचानने की,
पहचान नही पाता, यह तो हवा का झोंखा है कोई ।
रात की तनहाइयों मे बदलता हु जो मै करवटें ,
गुजरा हुआ लम्हा बड़ी शिद्दत से याद आता है कोई।
भागा तो था तुमसे दूर पर मै बेवफा तो नही ,
चुकाना है कम्भख्त इस जिदगी का क़र्ज़ भी मुझे कोई,
भीड़ भरी महफिलों मे अक्सर खो जाता हु मै ,
अपने दिल का हाल आजकल किसी को बताता है कोई ।


शुक्रवार, 27 जून 2008

जिंदगी

कटते कटते कुछ इस तरह से जिंदगी बसर गई,
साथ की तलाश थी पर तनहा गुजर गई।
आँखे तो खुली थी और मै देखता था खवाब ,
उम्मीद के चिराग को हवा बुझाती चली गई ।
मुकाम की तलाश में अक्सर भटकता रहा,
हाथ में आई बाज़ी अक्सर फिसल गई।
अब जो देखता हू आईने मे चेहरा अपना,
अपनी ही शक्ल अब अजनबी सी लगने लगी।

बुधवार, 21 मई 2008

दूसरा रुख

कहने को तो कहा जा सकता है कि हम ६० साल पहले आजाद हो गए थे लेकिन क्या वाकई मे ऐसा है। हम जहाँ एक तरफ़ बात करते है कि हिंदुस्तान इस समय अभूतपुर्वे रूप से तरक्की कर रहा है। जहा मित्तल, टाटा, भारती, रिलायंस, विदेओकोन आदि अनेक व्यापारिक घराने इंटरनेशनल कंपनी का अदिग्रहण करने मे व्यस्त है और सरकार उपग्रह छोड़ कर आनंद मे मगन है और मंगल पर यान भेजने कि तैयारीयों मे व्यस्त है वही दूसरी तरफ़ बुंदेलखंड मे किसान पानी को तरस रहे है , किसान भुखमरी के कारन आत्महत्या कर रहे है, आम आदमी
अपनी रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा करने मे मारा जा रहा है। हम अपने नागरिको का जीवन स्तर तो सुधार नही पा रहे है और तरक्की की चका चौंध मे कोय जा रहे है.