शनिवार, 8 जून 2013

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बी जे पी के आज कल के हालातो में एक कहावत याद आती है और एक शेर की पंक्ति याद आती है ! कहावत है " घर का भेदी लंका ढाय " और शेर की पंक्ति है " घर को आग लग गई घर के ही चिराग से " !

इसमें कुछ भी आश्चर्यचकित करने जैसी कोई बात नहीं लगती क्यों की इस देश का इतिहास ही हमें ये बताता है.!
अगर अपने स्वार्थ की पूर्ति नहीं होती तो देश पर दाव लगाने वालो की कमी नहीं है इतिहास में ! ये अभी भी हो रहा है और होता भी रहेगा !

इस बात में कोई दो राय नहीं है की बी जे पी के उत्थान में आडवानी जी का बहुत बड़ा योगदान है और रहेगा भी.किन्तु ८४ वर्ष की इस अवस्था में जो कार्य उन्होंने पिछले दो दिनों में किया बी जे पी की सारी साख रसातल में मिला दी.! अगर उन्हें कोई तकलीफ थी तो पार्टी फोरम में जाकर कहते ये क्या बच्चो की तरह मुह फुलाकर घर पर बैठ गए कि जाओ " तुम मोदी को खिलाओगे तो मै नहीं खेलूँगा " अगर प्रमोद जी जैसे उनके समर्थक ये कहे की आडवानी जी वाकई बीमार थे तो वो वीडियो कांफ्रेंसिंग से कार्यकारिणी को संबोधित कर सकते the ! और अगर वो वाकई में इतने ही बीमार थे कि इस प्रकार भी कार्यकारिणी को संबोधित नहीं कर सकते तो फिर किस तरह उनके समर्थक उनको अगला प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार मान रहे है ! एक साल बाद उनकी उम्र ८५-८६ साल हो जायगी. क्या यह सक्रिय राजनीति करने कि उम्र है ?? अगर कोई ये सोचता है तो मुझे तरस आता है.

मुझे आडवानी के विरोध का दूसरा ही कारन नज़र आता है ये कुर्सी का चक्कर नहीं है ! मुझे लगता है कि मोदी जी जिस प्रचार समिति का अध्यक्ष बनने जा रहे है वो नवम्बर में होने वाले ४ राज्यों के चुनाव कि भी जिम्मेदारी संभालेगी और जिसके लिय आडवानी जी दूसरी समिति कि मांग कर रहे है और राजनाथ जी ने एक ही प्रचार समिति कि बात कही थी ! दरअसल क्या हो सकता है कि निष्पक्षता से अगर बात कि जाय तो मध्य परदेश और छत्तीसगढ़ कि सरकार अच्छा काम कर रही है और उनके तिबारा जीतने के आसार है ! राजस्थान और दिल्ली कि जनता वहां कि सत्ताधारी कांग्रेस से काफी नाराज है और वहां भी बी जे पी के पक्ष में सत्ता परिवर्तन हो सकता है ! इसलिय वहां के बी जे पी के शीर्ष नेताओ को लगता हो कि मेहनत हमारी और सारा श्रेय कही मोदी जी को न मिल जाय और उन्होंने आडवानी जी से गुहार लगाई ही कि आडवानी जी बचाओ और आडवानी जी उनके पक्ष में खुलकर न कह पा रहे हो ! किन्तु इस तरह के क्रिया कलापों से उन्होंने बी जे पी को सरे जग में हंसी का पात्र बना दिया है !!! ये उन्हें शोभा नहीं देता और हाँ बी जे पी को अभी से घोषणा कर देनी चाहिये कि देश का अगला राष्ट्रपति आडवानी जी होंगे.. इससे आडवानी जी के ह्रदय को भी शांति मिलेगी.. इस उम्र में वो प्रधान मंत्री पद के नहीं वरन राष्ट्रपति पट के भूमिका में सही फिट होंगे...
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मंगलवार, 30 अगस्त 2011

अन्ना आन्दोलन- एक नजरिया

दिनांक 16/08/2011 को शुरू हुआ अन्ना का आन्दोलन आखिर समाप्त हो गया. अनशन जिन मुद्दों को लेकर हुआ था वो मुद्दे हल होंगे की नहीं यह तो भविष्य में ही पता चलेगा. किन्तु इस घटना क्रम ने कई सवाल जरूर पैदा कर दिय जिनका जबाब भी समय ही देगा खैर इस आन्दोलन की सबसे प्रमुख वजह थी सरकार की इस आन्दोलन और इस विषय की गंभीरता को समझ पाने में विफलता. साथ ही जिस तरह से इस आन्दोलन को संभाला गया उससे देश के कोने कोने में सरकार के विरोध का स्वर तेज होता गया जो की सरकार के हेडफोन ( इतालियन म्यूजिक सुनते ) लगाय हुए कान सुन नहीं सके. साथ ही सरकार की ऐसे जन आन्दोलन का सामना करने की आदत भी नहीं है. उसे अपेक्छा भी नहीं थी भारत इस मुद्दे पर एक हो सकता है क्योकि अभी तक की हर सरकार बाटो और राज करो की राजनीति करती आई है.

सरकार और कुछ और दलों द्वारा इस आन्दोलन को संसद को चुनौती माना गया और कहा की संसद ही सर्वोच्च है. इसकी सर्वेभौमिकता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. कौन कह रहा है क़ि लोग सवाल उठा रहे है ? कौन कह रहा है कानून संसद नहीं जनता बनाएगी? संविधान के अनुसार संसद, विधान सभा या नगर पालिका आदि सदनों में जो प्रतिनिधि चुनकर पहुचते है वो जनसेवक कहलाते है. यानी जनता मालिक हुई और प्रतिनिधि सेवक तो उस प्रतिनिधि के काम सही से न करने क़ि दशा में उससे सवाल पूछना या सही कार्य करने हेतु दवाब डालना कहाँ से अलोकतांत्रिक हो गया.

इस आन्दोलन क़ि सफलता का श्रेय सिर्फ और सिर्फ जनता को ही दिया जा सकता है. अन्ना ने मुद्दा उठाया और जनता ने पुरे देश में इस आन्दोलन में भागीदारी कर इस आन्दोलन को वो स्वरुप प्रदान किया जिसकी आज पुरे विश्व में चर्चा हो रही है. दुनिया में जहा हिंसा से क्रांति लाई जा रही है वही इस आन्दोलन ने बताया क़ि अहिंसक तरीके से भी सफलता पाई जा सकती है किन्तु इसके लिय ऐसे व्यक्तित्व क़ि आवश्यकता है जो क़ि पूर्ण रूप से निष्कलंक हो. उसकी काठी और करनी में अंतर न हो. दुर्भाग्य से इस देश में अब अन्ना के अलावा कोई ऐसा नहीं दिखता जो ऐसे आन्दोलन क़ि बागडोर अपने हाथ में ले और सारा देश उसके पीछे एक होकर खड़ा हो जाय .

ज्यादातर सांसद इस आन्दोलन की आलोचना कर रहे है. कह रहे है की लोकतंत्र के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है. दलित नेताओ जैसे उदितराज जी और मायावती जी को यह दलित विरोधी लग रहा है . ऐसा किस द्रष्टि से उन्हें लग रहा है समझ नहीं पा रहा हु. जहाँ तक अगर मै अपनी बात कहू तो १९७७ का कुछ खास याद नहीं किन्तु मंडल आन्दोलन और राम मंदिर आन्दोलन की याद ताज़ा है यह वो आन्दोलन है जिसमे की जनता की भागीदारी समग्र रूप से थी किन्तु उन आन्दोलन से कितना लाभ मिला नहीं कह सकता लेकिन इतना जरूर मानता हु कि उन आंदोलनों ने समाज में नफरत फ़ैलाने का काम किया. असंख्य मासूमो की बलि इन आंदोलनों में दे दी गई .इस आन्दोलन ने जात पात , धरम आदि को किनारे कर एक मिसाल कायम की. समाज का हर वर्ग इस आन्दोलन का हिस्सा बना और उसने इस आन्दोलन का समर्थन किया. यह आन्दोलन कहाँ से दलित विरोधी है ? क्या भ्रस्ट्राचार का सामना सिर्फ अगड़ी जातियो को ही करना पड़ता है , यदि संविधान में कोई कमी है तो उसमे संशोधन करना दलित विरोधी है तो ऐसे लोगो को अपनी सोच बदलनी पड़ेगी.कुछ ऐसे सांसद जो २५ -३० साल पहले किये गए आंदोलनों की कमाई खा रहे है , का कहना है कि इस आंदोलनों को आम जनता का कोई सहयोग नहीं मिल रहा है ऐसे आंदोलनों में हिस्सा लेना अभिजात्य वर्ग का फैशन बन गया है ,कोई कुत्ता टहलाने निकला , कोई चाट पकोड़ी खाने निकला और राम लीला मैदान पहुच गया तो इसे जनता का समर्थन नहीं कहा जा सकता. क्या मुंबई में डिब्बा पहुचाने करने वाले, हर नगर के auto वाले, रेडी वाले चाय वाले, छोटे छोटे दुकानदार , महिलाय, छात्र, बच्चे , विद्यार्थी, नौकरी पेशा लोग जो भारत के हर छोटे बड़े नगर में प्रदर्शन के लिय जुटे क्या उन्हें यह दिखाई नहीं देता.वो शतुरमुर्ग की उस दशा से बाहर निकले जो रेत में सर छुपा लेता है और सारा शरीर बाहर होने पर भी सोचता है की उन्हें कोई देख नहीं रहा. वो नेता जिनमे अभी इमान धरम अभी बाकि है वो संभल जाय की जनता अब आती है और वो जाग गई है.अपने क्रिया क्रलापो से जो छवि उन्होंने बिगाड़ ली है उस छवि को सुधार ले या फिर राजनीती से संन्यास ले ले क्योकि अब जनता दुबारा मौका नहीं देगी परिवर्तन की शुरआत हो चुकी है.


मुझे व्यक्तिगत तौर पर कभी नहीं लगा किन्तु बहुत से लोगो को राहुल गाँधी और उनकी युवा टीम से बहुत उम्मीद थी जोकि पिछले दो महोनो में धूल धूसरित हो गई.राहुल गाँधी में गाँधी उपनाम के अलावा ऐसी क्या विशेषता है जो उनके इतने चर्चे होते है उनका राजनीती या समाज में क्या योगदान है. सुषमा स्वराज ने भी सदन में कहा क़ि वो संसद में बहुत कम आते है. इतने चर्चे अन्य युवा नेताओ सचिन पायलट, नविन जिंदल , ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि के क्यों नहीं होते ? कांग्रेस में होने वाले अच्छे कार्य का सेहरा राहुल गाँधी के सर ही क्यों बंधता है? यदि सब राहुल ही करते है तो इस युवा टीम का भारतीय राजनीति में क्या योगदान है? वैसे सच भी है इस युवा टीम का राजनीति और समाज में क्या योगदान है कोई नहीं जानता. सिर्फ अपने पिताओ क़ि विरासत को भुनाने के अलावा कोई योगदान नहीं दिया.

राहुल गाँधी के राजनीती में प्रवेश के उपरांत कहा गया युवा शक्ति का आगमन . अब भारत की राजनीति का एक नया दौर आरम्भ होगा. राहुल गाँधी और उनकी युवा टीम ने सिर्फ १ काम किया गाँधी जी की १ सीख पर अमल कि बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो. इस सरकार के पिछले और इस कार्यकाल में भ्रस्ट्राचार की सारी हदे टूट गई किन्तु इस युवा टीम ने न कुछ देखा , न कुछ सुना और न कुछ बोला. अगर कुछ देखा, सुना और बोला तो केवल उत्तर प्रदेश या बी जे पी शासित प्रदेशो में.. वो भूल गए कि किसी कि तरफ एक ऊँगली उठाने से बाकि बची तीन उँगलियाँ अपनी तरफ भी उठती है . जिस आभा मंडल के साथ वो देश में राजनीति करना चाहते है तो उन्हें बाहर सफाई करने से पहले अपने घर कि सफाई करने की जर्रूरत है. बहुत से लोगो का ऐसा मानना है की युवा और पड़े लिखे लोगो के आने के बाद देश में राजनीति का स्तर ऊपर उठेगा नए मापदंड स्थापित होंगे . नए मापदंड जरूर स्थापित हुए केवल भ्रस्ट्राचार के. पहले सिर्फ २,४ या १० करोड़ के घोटाले सुनने में आते थे और अब ज्यादा पढ़े लिखे लोगो के आने के बाद १०, १००, २०० करोड़ की तो बात ही मत करिए, हज़ार और लाख करोड़ से नीचे का तो कोई घोटाला सुनने में ही नहीं आता.


चलते चलते
हमारे प्रधानमंत्री ईमानदार है इसमें कोई शक नहीं . चूँकि वो गाँधी जी की पार्टी से आते है तो गाँधी जी की एक सलाह याद करे कि अन्याय करने वाला तो अपराधी है ही अन्याय सहने वाला भी अपराधी होता है

कुछ सरकार समर्थक और सांसद गण मीडिया की आलोचना कर रहे है मीडिया की वजह से से इस आन्दोलन ने जोर पकड़ा. मै इस विवाद ने में नहीं पड़ना चाहता. किन्तु इस मीडिया की वज़ह से ही हमे इस समाज के तमाम अनछुए पहलुओ को देखने और समझने का मौका दिया है . इसी मीडिया ने जन प्रतिनिधिओ द्वारा सदन में जूते चप्पल चलाते और अपनी ही साथी की सदन में साड़ी फाड़ने के द्रश्य दिखाय है. संविधान तब शर्मसार नहीं हुआ था , भ्रस्ट्राचार के खिलाफ आवाज़ उठाने से संविधान शर्मसार होता है और आन्दोलन कर्ता अन्ना को तिहाड़ जेल भेजने में संविधान शर्मसार नहीं होता हजारो करोडो के घोटाले वाले आरोपी लालू प्रसाद यादव को केस के दौरान जेल नहीं भेजा जाता गेस्ट हाउस में रखा जाता है तब भी संविधान शर्मसार नहीं होता.....

शिव सेना और महारास्ट्र नव निर्माण सेना के कर्ण धारो से कहना है कि सही बात करने के कारण सारा भारत एक मराठी के पीछे खड़ा है. किसी ने भी न सोचा न पूछा कि अन्ना किस प्रदेश के है. इसलिय बाटने कि राज निति छोड़कर जोड़ने कि राजनीति करो . प्रांतीयता छोड़ो और देश को पकड़ो.

जय हिंद जय भारत

शनिवार, 28 जून 2008

बताता है कोई !

अचानक रात को चलता हुआ आता है कोई,
मेरे बालो को बड़ी खामोशी से सहलाता है कोई।
अंधेरे मे कोशिश करता हु उसे पहचानने की,
पहचान नही पाता, यह तो हवा का झोंखा है कोई ।
रात की तनहाइयों मे बदलता हु जो मै करवटें ,
गुजरा हुआ लम्हा बड़ी शिद्दत से याद आता है कोई।
भागा तो था तुमसे दूर पर मै बेवफा तो नही ,
चुकाना है कम्भख्त इस जिदगी का क़र्ज़ भी मुझे कोई,
भीड़ भरी महफिलों मे अक्सर खो जाता हु मै ,
अपने दिल का हाल आजकल किसी को बताता है कोई ।


शुक्रवार, 27 जून 2008

जिंदगी

कटते कटते कुछ इस तरह से जिंदगी बसर गई,
साथ की तलाश थी पर तनहा गुजर गई।
आँखे तो खुली थी और मै देखता था खवाब ,
उम्मीद के चिराग को हवा बुझाती चली गई ।
मुकाम की तलाश में अक्सर भटकता रहा,
हाथ में आई बाज़ी अक्सर फिसल गई।
अब जो देखता हू आईने मे चेहरा अपना,
अपनी ही शक्ल अब अजनबी सी लगने लगी।

बुधवार, 21 मई 2008

दूसरा रुख

कहने को तो कहा जा सकता है कि हम ६० साल पहले आजाद हो गए थे लेकिन क्या वाकई मे ऐसा है। हम जहाँ एक तरफ़ बात करते है कि हिंदुस्तान इस समय अभूतपुर्वे रूप से तरक्की कर रहा है। जहा मित्तल, टाटा, भारती, रिलायंस, विदेओकोन आदि अनेक व्यापारिक घराने इंटरनेशनल कंपनी का अदिग्रहण करने मे व्यस्त है और सरकार उपग्रह छोड़ कर आनंद मे मगन है और मंगल पर यान भेजने कि तैयारीयों मे व्यस्त है वही दूसरी तरफ़ बुंदेलखंड मे किसान पानी को तरस रहे है , किसान भुखमरी के कारन आत्महत्या कर रहे है, आम आदमी
अपनी रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा करने मे मारा जा रहा है। हम अपने नागरिको का जीवन स्तर तो सुधार नही पा रहे है और तरक्की की चका चौंध मे कोय जा रहे है.